Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Kab kisi ne pyar chaha“ , “कब किसी ने प्यार चाहा ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कब किसी ने प्यार चाहा
Kab kisi ne pyar chaha

 

कब किसी ने प्यार चाहा
आवरण में प्यार के,
बस, देह का व्यापार चाहा

प्रेम अपने ही स्वरस की चाशनी में रींधता है
शूल कोई मर्म को मीठी चुभन से बींधता है
है किसे अवकाश इसकी सूक्ष्मताओं को निबाहे
लोक ने, तत्काल विनिमय
का सुगम उपहार चाहा
कब किसी ने प्यार चाहा

प्रेम अपने प्रेमभाजन में सभी सुख ढूँढता है
प्रीति का अनुबंध अनहद नाद जैसा गूँजता है
है किसे अब धैर्य जो सन्तोष का देखे सहारा
लोक ने लघुकामना हित भी
नया विस्तार चाहा।
कब किसी ने प्यार चाहा

प्रेम की मधु के लिये कुछ पात्र होते हैं अनोखे
गहन तल, जो रहे अविचल, छिद्र के भी नहीं धोखे
कागज़ी प्याले कहाँ तक इस तरल भार ढोते
इसलिये परिवर्तनों का
सरल सा उपचार चाहा।
कब किसी ने प्यार चाहा

शुद्धता मन की हृदय की और तन की माँगता है
हाँ! परस्पर वेदनाओं को स्वयं अनुमानता है
किन्तु इस स्वच्छन्द युग की रीतियाँ ही हैं निराली
प्रेम में उन्मुक्त विचरण का
अगम अधिकार चाहा।
कब किसी ने प्यार चाहा।

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