कभी – कभी जो नीति हमें चलना
Kabhi – kabhi jo niti hame chalna
कभी – कभी जो नीति हमें चलना सिखलाती है।
कभी वही हमको इच्छित पथ से भटकाती है।
कभी – कभी मन का सूनापन अच्छा लगता है।
कभी – कभी सूनेपन से तबीयत घबराती है।
कभी – कभी हम भरी भीड़ मे रहे अकेले से,
कभी अकेले में यादों की भीड़ सताती है।
कभी – कभी मिलने की इच्छा पागल कर देती,
कभी – कभी मिल जाने पर तबीयत उकताती है।
कभी – कभी यूँ ही सोचा तत्काल हुआ करता,
कभी – कभी छोटी सी आशा उम्र बिताती है।
कभी – कभी हम ईश्व र के अत्यन्त कृतज्ञ हुये,
कभी – कभी उनके विवेक पर चिढ़ सी आती है।
कभी – कभी खुशियाँ ही मन को विचलित कर देतीं,
कभी – कभी मन की पीड़ा भी मन बहलाती है।
कभी – कभी वर्षों तक कोई गीत नहीं बनता।
कभी – कभी हर पंक्ति स्वयं कविता हो जाती है।