Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Roz jimmedariya badhti gai “ , “रोज़ जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

रोज़ जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं
Roz jimmedariya badhti gai

 

रोज़ जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं।
ज़ीस्त की दुश्वारियाँ बढ़ती गईं।

पेशकदमी वो करे मैं क्यों बढ़ूँ,
इस अहम में दूरियाँ बढ़ती गईं।

आप भी तो खुश नहीं, मैं भी उदास
किसलिये फिर तल्ख़ियाँ बढ़ती गईं।

भूख ले आई शहर में गाँव को,
झुग्गियों पर झुग्गियाँ बढ़ती गईं।

मुस्कराहट सभ्यता का इक फ़रेब,
दिन-ब-दिन ऐय्यारियाँ बढ़ती गईं।

आग से महफ़ूज़ रह पायेगा कौन,
यूँ ही गर चिंगारियाँ बढ़ती गईं।

अम्न के संवाद के साये तले
जंग की तैय्यारियाँ बढ़ती गईं।

 

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