वो मेरे हक़ के लिये मेरा बुरा करते हैं
Vo mere haq ke liye mera bura karte hai
अब अंधेरों में उजालों से डरा करते हैं
ख़ौफ़, जुगनूँ से भी खा करके मरा करते हैं
दिल के दरवाजे पे दस्तक न किसी की सुनिये
बदल के भेष लुटेरे भी फिरा करते हैं
उनका अन्दाज़े-करम उनकी इनायत है यही
वो मेरे हक़ के लिये मेरा बुरा करते हैं
गुनाह वो भी किये जो न किये थे मैंने
यूँ कमज़र्फ़ों के किरदार गिरा करते हैं
तंज़ करके गयी बहार भी मुझपे ही ‘अमित’
कभी सराब भी बागों को हरा करते हैं