Hindi Poem of Anamika “Darvaja“ , “दरवाज़ा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

दरवाज़ा
Darvaja

 

मैं एक दरवाज़ा थी
मुझे जितना पीटा गया
मैं उतना ही खुलती गई।
अंदर आए आने वाले तो देखा–
चल रहा है एक वृहत्चक्र
चक्की रुकती है तो चरखा चलता है

चरखा रुकता है तो चलती है कैंची-सुई
गरज यह कि चलता ही रहता है
अनवरत कुछ-कुछ!
और अन्त में सब पर चल जाती है झाड़ू
तारे बुहारती हुई

बुहारती हुई पहाड़, वृक्ष, पत्थर
सृष्टि के सब टूटे-बिखरे कतरे जो
एक टोकरी में जमा करती जाती है
मन की दुछत्ती पर।

 

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