चिड़िया और चिरौटे
Chidiya aur chirote
क्या बदला है
गौरैया रूठ गई
भाँप रहे
बदले मौसम को
चिड़िया और चिरौटे
झाँक रहे
रोशनदानों से
कभी गेट पर बैठे
सोच रहे
अपने सपनों की
पैंजनिया टूट गई
शायद पेट से
भारी चिड़िया
नीड़ बुने, पर कैसे
ओट नहीं
कोई छोड़ी है
घर पत्थर के ऐसे
चुआ डाल से होगा
अंडा
किस्मत ही फूट गई