एक जलधारा से संवाद
Ek Jaldhara se samvad
जैसे
मैं यहाँ बैठा हूँ
आपके समीप
देख सकता हूँ मैं
वह सब कुछ
जो प्रकट हुआ है
यहाँ पर
हमारी उपस्थिति के परिणामस्वरूप
मैंने हर बसंत को
देखा है
जलतरंगों को
आपके जलाशय में
लहराते हुए
ऊपर-नीचे
सरपत
डाल रहा है अपनी परछाईं
आपके तट के
छिछले पानी पर
लोमड़ी और खरगोश
आते हैं पास आपके
बुझाने अपनी प्यास
प्रतिदिन
जैसे कि
शीत ऋतु देती है
आपको
गलने वाली ताज़ी वर्फ
क्या मैं नहीं दूंगा
प्रतिदान
जो कुछ प्राप्त हुआ है मुझे
बरसों-बरस आपसे
इसीलिए आप और मैं
बहते रहेंगे
वहां तक
जहाँ तक करेगी अनुसरण हमारा
हमारी युवा पीढ़ी
शायद हम जायेंगे
वापस
किसी विशाल समुद्र के
अंजान गर्भ तक