एक तिनका हम
Ek Tinka hum
हमारा क्या वज़न
हम पराश्रित
वायु के
चंद पल हैं आयु के
एक पल अपना ज़मीं है
दूसरा पल है गगन
ईंट हम
इस नीड़ के
ईंट हम उस नीड़ के
पंछियों से हर दफ़ा
होता गया अपना चयन
ग़ौर से
देखो हमें
रँग वही हम पर जमे
वो हमी थे, जब हरे थे
बीज का हम कवच बन
हम हुए
जो बेदख़ल
घाव से छप्पर विकल
आज भी बरसात में
टपकें हमारे ये नयन
साध थी
उठ राह से
हम जुड़ें परिवार से
आज रोटी सेंक श्रम की
ज़िंदगी कर दी हवन