एक विचारणीय क्षण
Ek vicharniya kshan
निर्जन बागीचे के एकांत कोने में
विचार करता हुआ कि
कितनी बार किया है मैंने प्रयास
इन्द्रधनुष को पकड़ने का
तब तक
जब तक कि घेरे रहे मुझे
आस्ट्रेलियाई प्रजाति के सुन्दर तोते
और तितलियाँ
अरे! याद आता है
वह समय
जब बैठा था मैं
नदी के किनारे
अंजान होकर
कि मेरे ही समीप
वह बह रही है
अपनी डगर पर
किसी सुन्दर स्थान की ओर
काश! मैं जान पाता
जब मैं वहां बैठा हुआ था
क्या मैंने कभी प्रयास किया
उसे थामने का
अब नीरवता में
बैठा हूँ मैं
बागीचे के इस कोने में
जानता हूँ
जो कुछ भी वहाँ था
उसका अपना अर्थ था
और जो होना है
समय आने पर होगा ही
तितलियाँ, तोते, नदी और मैं
सभी बढ़ते रहेंगे
विशालतम की ओर
और ‘मैं’ ही हूँ
तितली, तोता और नदी
जैसे कि
तितली, तोता और नदी है ‘मैं’