गगन में बदरा
Gagan me Badra
आये बदरा छाये
आते ही झट लगा खेलने
सूरज आँख-मिचौनी
घुले-मिले तो ऐसे-जैसे
मिसरी के संग नैनी
बाट जोहते रहे बटोही
धूप-छाँव के साये
हुआ मगन मन गाये कजरी
गाये बारहमासी
लहकी-थिरकी है पुरवइया
देख पक्षाभ-कपासी
औचक-भौचक ढ़ोल-मजीरा
मौसम धूम मचाये
करो हरी तुम कोख धरा की
आओ बदरा बरसो
क्या रक्खा है कल करने में
या करने में परसों
उम्मीदों की फसल उगाओ
हम हैं आस लगाये