पंच गाँव का
Panch Ganv ka
झूम चाल है
लगते कुछ बेढंगे
इज्जत इनसे दूर
कि इनकी
जेबों में हैं दंगे
दबंगई की दाढ़
लगी है
कैसी आदमखोरी
सूंघ रहे गस्ती में कुत्ते
लागर की कमजोरी
इनकी चालों में
फँस जाते
अच्छे-अच्छे चंगे
गिरवी पर
गोबर्धन का श्रम
है दरियादिल मुखिया
पत्थर-सी रोटी के नीचे
दबी हुई है बिछिया
न्याय स्वयं
बिकने आता है
बेदम-से हैं पंगे
पंच गाँव का
खुश है लेकिन
हाथ तराजू डोले
लगता जैसे एक-
अनिर्णय की भाषा में बोले
उतर चुका दर्पण का
पारा
सम्मुख दिखते नंगे