तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है
Tera har lafz meri ruh ko chukar nikalta he
तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है.
तू पत्थर को भी छू ले तो बाँसुरी का स्वर निकलता है.
कमाई उम्र भर कि और क्या है, बस यही तो है
में जिस दिल में भी देखूं वो ही मेरा घर निकलता है.
मैं मंदिर नहीं जाता मैं मस्जिद भी नही जाता
मगर जिस दर पर झुक जाऊं वो तेरा दर निकलता है
ज़माना कोशिशें तो लाख करता है डराने की
तुझे जब याद करता हूँ तो सारा दर निकलता है.
यहीं रहती हो तुम खुशबू हवाओं की बताती है
यहाँ जिस ज़र्रे से मिलिए वही शायर निकलता है.