वक़्त जीवन में ऐसा न आये कभी
Waqt jeevan me esa na aaye kabhi
वक़्त जीवन में ऐसा न आये कभी
ख़त किसी के भी कोई जलाये कभी
धुल है, धुंध है, शोर ही शोर है
कोई मधुवन में बंसी बजाये कभी
मेरी मासूमियत खो गई है कहीं
काश बचपन मेरा लौट आये कभी
जिसकी खातिर में लिखता रहा उम्र भर
वो भी मेरी ग़ज़ल गुनगुनाये कभी