Hindi Poem of Ashok Vajpayee “  Chata ”,”छाता” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

छाता

 Chata

 

छाते से बाहर ढेर सारी धूप थी

छाता-भर धूप सिर पर आने से रुक गई थी

तेज़ हवा को छाता

अपने-भर रोक पाता था

बारिश में इतने सारे छाते थे

कि लगता था कि लोग घर बैठे हैं

और छाते ही सड़क पर चल रहे हैं

अगर धूप, तेज़ हवा और बारिश न हो

तो किसी को याद नहीं रहता

कि छाते कहाँ दुबके पड़े हैं

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.