जो कुटिलता से जियेंगे
Jo Kutilta se jiyenge
छीनकर छ्लछंद से
हक पराया मारकर
अम्रित पिया तो क्या पिया?
हो गये बेशक अमर
जी रहे अम्रित उमर
लेकिन अभय अनमोल
सारा छिन गया ।
देवता तो हो गये पर
क्या हुआ देवत्व का?
आयुभर चिन्ता करो अब
पद प्रतिष्टा,राजसत्ता
और अपने लोक की!
छिन नहीं जाए सुधा सिंहासनों की
एक हि भय
रात दिन आठों प्रहर
प्राण में बैठा रहे–
इस भयातुर अमर
जीवन का करो क्या?
जो किसि षड्यंत्र मे
छलछंद में शामिल नहीं था
पी गया सारा हलाहल
हो गया कैसे अमर?
पा गया साम्राज्य
’शिव’- संग्या सहित
शिवलोक का
कर रहा कल्याण सारे विश्व का!
सुर – असुर सब पूजते
उसको निरंतर
साध्य सबका बन गया
कर्म मे कोई कलुष
जिसके नहीं है
शीश पर नीलाभ नभ
खुद छत्र बनकर तन गया!
जो कुटिलता से जियेंगे
वे सदा विचलित रहेंगे
त्राण-त्राता के लिये
मारे फिरेंगे!
हक पराया मारकर
छलछंद से छीना हुआ
अम्रित अगर मिल भी गया तो
आप उसका पान करके
उम्र भर फिर क्या करेंगे?