Hindi Poem of Balkavi Beragi “  Mere Desh ke Lal ”,”मेरे देश के लाल” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मेरे देश के लाल

 Mere Desh ke Lal

 

पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान

कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान

मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान

सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान

आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने

मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

दूध-दही की नदियां जिसके आँचल में कलकल करतीं

हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती

हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं

उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती

रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने

मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी

विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी

मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी

अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी

ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने

मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

जहाँ पढाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना

जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना

जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना

बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना

उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने

मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

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