शिशुओं के लिए कविताएँ-2
Shishuo ke liye kavitaye 2
सोचो-समझो और विचारो,
पेड़ों को पत्थर मत मारो ।
समझाता हमको विज्ञान,
उनमें भी होती है जान ।।
सबसे हँसकर मीठा बोलो,
हमें बड़ों ने यही सिखाया ।
यही अगर हम सीख सके तो,
समझो जीवन सफल बनाया ।।
चाट रही गैया बछड़े को,
पिला रही है अपना दूध ।
कूद रहा मस्ती से बछड़ा,
लम्बी, ऊँची, नीची कूद ।।
फ़ोन की घंटी ज्यों ही बजती,
दीदी कहती- चलो! चलो!
(पर) कुछ भी नहीं सुनाई पड़ता,
करते रहिए हलो! हलो!
नानी मेरी प्यारी नानी,
बातें करती बड़ी सयानी ।
मुझे कहानी रोज़ सुनाती,
मम्मी तक को डाँट पिलाती ।।