Hindi Poem of Balswaroop Rahi “  Gajre ka ek Phool ”,”गजरे का एक फूल” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गजरे का एक फूल

 Gajre ka ek Phool

 

पूजा की माला में कैसे तो गुँथ गया

एक फूल गजरे का

अर्चना के बोलों से आ जुडी

मुजरे की एक कड़ी।

गंगा के बीच नहीं

छिछले तालाब में उतरती हैं

मन्दिर की सीढियाँ,

फूल नहीं, दीप नहीं

उनसे टकराती हैं

पानों की पीक और बीड़ियाँ।

सामने दुकानें हैं, होटल हैं, बार हैं

जहाँ रोज़ मरती है कोई मोनालिसा

फ्रेम में जड़ी-जड़ी।

रेशम के तार और मकड़ी के जाले

कटते हैं साथ-साथ

पार्क में टहलते हैं रूप और पशु दोनों

हाथों में दिए हाथ

कमरों में चलते रोमांस

और बच्चों के वास्ते सडकें हैं बड़ी-बड़ी!

नील अंधियार में जुगनू के सर्प चलते हैं

फैशन की तरह लोग घर बदलते हैं

एक सी मशीनों में

भाषण भी, श्लोक भी, नारे भी ढलते हैं।

सरल नहीं ख़ुद को पहचानना

सहज नहीं धर्म और ईश्वर के अंतर को जानना

सम्भव अब नहीं रहा

अलग-अलग चीज़ों को अलग-अलग मानना

दूर बड़ी दूर कहीं ज़िंदगी निकल आई

देती आवाज़ रही चेतना खड़ी-खड़ी।

 

 

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