Hindi Poem of Balswaroop Rahi “  Panch Muktak ”,”पाँच मुक्तक” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

पाँच मुक्तक

 Panch Muktak

 

मेरा विश्वास पराजय को ज़हर होता है

मेरा उल्लास उदासी को क़हर होता है

मुझे घिरते हुए अँधियारे की परवाह क्या

मेरी हर बात का अंजाम सहर होता है

आज बदली है ज़माने ने नई ही करवट

नई धरा ने विचारों का छुआ है युग तट

तुम जिसे मौत की आवाज़ समझ बैठे हो

नए इनसान के क़दमों की है बढ़ती आहट

इन चमकदार कतारों पे नज़र रखती हूँ

सुर्ख़ बेदाग अँगारों पे नज़र रखती हूँ

दे के मिट्टी के खिलौने मुझे बहकाओ न तुम

मैं जवानी हूँ सितारों पे नज़र रखती हूँ

दूर तक एक भी आता है मुसाफ़िर न नज़र

ये भी मालूम नहीं रात है ये या के सहर

मेरे अस्तित्व के बस दो ही चिह्न बाक़ी हैं

एक बुझता-सा दिया, एक उजड़ती-सी नज़र

जिसके जीने से जी रहे थे हम

दर्द का दम निकल गया शायद

एक मुद्दत में नींद आई है

मौत का दिल पिघल गया शायद

 

 

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