Hindi Poem of Bashir Badra “He ajeeb shahar ki zindagi ”,”है अजीब शहर की ज़िंदगी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

है अजीब शहर की ज़िंदगी

He ajeeb shahar ki zindagi 

है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है

कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है

कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें

ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मतलबों का सलाम है

यूँ ही रोज़ मिलने कि आरज़ू बड़ी रख रखाव कि गुफ्तगू

ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है

वो दिलों में आग लगायेगा में दिलों कि आग बुझाऊंगा

उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है

न उदास हो  न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर

कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि शाम कर

कोई नग्मा धुप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि छाँव सा

ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है

 

 

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