Hindi Poem of Bashir Badra “Kabhi yu mile koi maslehat, koi khof dil me jara na ho” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कभी यूँ मिलें कोई मसलेहत, कोई ख़ौफ़ दिल में ज़रा न हो

Kabhi yu mile koi maslehat, koi khof dil me jara na ho

कभी यूँ मिलें कोई मसलेहत, कोई ख़ौफ़ दिल में ज़रा न हो

मुझे अपनी कोई ख़बर न हो, तुझे अपना कोई पता न हो

वो फ़िराक़ हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन

वो ग़ुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग़ बन के जला न हो

कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, दिलो-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं

मगर उस नगर में न क़ैद कर, जहाँ ज़िन्दगी का हवा न हो

वो हज़ारों बाग़ों  का बाग़ हो, तेरी बरक़तों की बहार से

जहाँ कोई शाख़ हरी न हो, जहाँ कोई फूल खिला न हो

तेरे इख़्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज़ दे

यूँ दुआयें मेरी क़ुबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ न हो

कभी हम भी जिस के क़रीब थे, दिलो-जाँ से बढ़कर अज़ीज़ थे

मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला न हो

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