Hindi Poem of Bashir Badra “Musafir ke raste badalte rahe”,”मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

 Musafir ke raste badalte rahe

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था

मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे

मेरे रास्ते में उजाला रहा

दिये उस की आँखों के जलते रहे

वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया

मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी

किराये के घर थे बदलते रहे

सुना है उन्हें भी हवा लग गई

हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे

लिपट के चराग़ों से वो सो गये

जो फूलों पे करवट बदलते रहे

 

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