रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए
Raat aankho me dhaki palko pe junu aaye
रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए
हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए
बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक
कोई ख़ुशबू में लगाऊँ तेरी ख़ुशबू आए
उसने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए
मेरा आईना भी अब मेरी तरह पागल है
आईना देखने जाऊँ तो नज़र तू आए
किस तकल्लुफ़ से गले मिलने का मौसम आया
कुछ काग़ज़ के फूल लिए काँच के बाजू आए
उन फ़कीरों को ग़ज़ल अपनी सुनाते रहियो
जिनकी आवाज़ में दरगाहों की ख़ुशबू आए