सिसकते आब में किस की सदा है
Sisakte aab me kis ki sada he
सिसकते आब में किस की सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है
सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा
ख़ुदा चरो तरफ़ बिखरा हुआ है
समेटो और सीने में छुपा लो
ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है
पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनेहरा हो चला है
हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है
समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है
हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक्सर चूमता है
मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है