Hindi Poem of Bashir Badra “Vahi taj he vahi takhat he”,”वही ताज है वही तख़्त है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

वही ताज है वही तख़्त है

 Vahi taj he vahi takhat he

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है

ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है

बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आएगी

ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी की ग़ुलाम है

मैं ये मानता हूँ मेरे दिए तेरी आँधियोँ ने बुझा दिए

मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है

 

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