वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
Vo to muddat se janata he mujhe
वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे
रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे
सुब्ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे
होने देता नही उदास कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे
मैं हूँ बेकल मगर सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे