बस इतना–अब चलना होगा
Bas itna ap chalna hoga
बस इतना–अब चलना होगा
फिर अपनी-अपनी राह हमें।
कल ले आई थी खींच, आज
ले चली खींचकर चाह हमें
तुम जान न पाईं मुझे, और
तुम मेरे लिए पहेली थीं;
पर इसका दुख क्या? मिल न सकी
प्रिय जब अपनी ही थाह हमें।
तुम मुझे भिखारी समझें थीं,
मैंने समझा अधिकार मुझे
तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,
था बना वही तो प्यार मुझे।
तुम लोक-लाज की चेरी थीं,
मैं अपना ही दीवाना था
ले चलीं पराजय तुम हँसकर,
दे चलीं विजय का भार मुझे।
सुख से वंचित कर गया सुमुखि,
वह अपना ही अभिमान तुम्हें
अभिशाप बन गया अपना ही
अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें
तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,
तुम समझ न पाईं जीवन को
जन-रव के स्वर में भूल गया
अपने प्राणों का गान तुम्हें।
था प्रेम किया हमने-तुमने
इतना कर लेना याद प्रिये,
बस फिर कर देना वहीं क्षमा
यह पल-भर का उन्माद प्रिये।
फिर मिलना होगा या कि नहीं
हँसकर तो दे लो आज विदा
तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,
यह मेरा आशीर्वाद प्रिये।