Hindi Poem of Bhagwati Charan Verma “  Sritikan“ , “स्मृतिकण” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

स्मृतिकण

 Sritikan

 

क्या जाग रही होगी तुम भी?

निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये! अपना यह व्यापक अंधकार,

मेरे सूने-से मानस में, बरबस भर देतीं बार-बार;

मेरी पीडाएँ एक-एक, हैं बदल रहीं करवटें विकल;

किस आशंका की विसुध आह! इन सपनों को कर गई पार

मैं बेचैनी में तडप रहा; क्या जाग रही होगी तुम भी?

अपने सुख-दुख से पीडित जग, निश्चिंत पडा है शयित-शांत,

मैं अपने सुख-दुख को तुममें, हूँ ढूँढ रहा विक्षिप्त-भ्रांत;

यदि एक साँस बन उड सकता, यदि हो सकता वैसा अदृश्य

यदि सुमुखि तुम्हारे सिरहाने, मैं आ सकता आकुल अशांत

पर नहीं, बँधा सीमाओं से, मैं सिसक रहा हूँ मौन विवश;

मैं पूछ रहा हूँ बस इतना- भर कर नयनों में सजल याद,

क्या जाग रही होगी तुम भी?

 

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