जागते रहो
Jagte raho
डूबता दिन, भीगती-सी शाम
बन्द कर दो काम,
लो विश्राम ।
यह तिमिर की शाल
ओढ़ लो वसुधे! न सिकुड़े शीत से यह लाल,
जग का बाल ।
वलय की खनकार,
दीप बालो री सुहागिनी! जग उठे गृह-द्वार
बन्दनवार!
किन्तु साथी! देख
हम न सोएँगे, हमारा कार्य है अवशिष्ट
अपनी प्रगति का अब भी अधूरा लेख ।
जागरण, फिर जागरण ही है हमारा इष्ट!
लो, क्षितिज के पास —
वह उठा तारा, अरे! वह लाल तारा, नयन का तारा हमारा
सर्वहारा का सहारा
विजय का विश्वास ।