Hindi Poem of Bharat Bhushan Aggarwal “Vasiyat“ , “वसीयत” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

वसीयत
Vasiyat

भला राख की ढेरी बनकर क्या होगा?
इससे तो अच्छा है
कि जाने के पहले
अपना सब कुछ दान कर जाऊँ ।

अपनी आँखें
मैं अपनी स्पेशल के ड्राइवर को दे जाऊँगा ।
ताकि वह गाड़ी चलाते समय भी
फ़ुटपाथ पर चलती फुलवारियाँ देख सके

अपने कान
अपने अफ़सर को
कि वे चुग़लियों के शोर में कविता से वंचित न हों

अपना मुँह
नेताजी को
–बेचारे भाषण के मारे अभी भूखे रह जाते हैं

अपने हाथ
श्री चतुर्भुज शास्त्री को
ताकि वे अपना नाम सार्थ्क कर सकें

अपने पैर
उस अभागे चोर को
जिसके, सुना है, पैर नहीं होते हैं

और अपना दिल
मेरी जान! तुमको
ताकि तुम प्रेम करके भी पतिव्रता बनी रहो!

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