मुकरियाँ
Mukriyan
सीटी देकर पास बुलावै।
रुपया ले तो निकट बिठावै।।
लै भागै मोहि खेलहिं खेल।
क्यों सखि सज्जन, नहिं सखि रेल।।
सतएँ-अठएँ मा घर आवै।
तरह-तरह की बात सुनावै।।
घर बैठा ही जोड़ै तार।
क्यों सखि सज्जन, नहीं अखबार।।
मुकरियाँ
Mukriyan
सीटी देकर पास बुलावै।
रुपया ले तो निकट बिठावै।।
लै भागै मोहि खेलहिं खेल।
क्यों सखि सज्जन, नहिं सखि रेल।।
सतएँ-अठएँ मा घर आवै।
तरह-तरह की बात सुनावै।।
घर बैठा ही जोड़ै तार।
क्यों सखि सज्जन, नहीं अखबार।।