बच्चों की तरह
Bacho ki Tarha
और जब रोये तो बच्चे की तरह
ख़ालिस सुख ख़ालिस दुख
न उसमें ख़याल कुछ पाने का
न मलाल इसमें कुछ खोने का
सुनहली हँसी और आंसू रुपहले
दोनों ऐसे कि मन बहला
उससे भी इससे भी
कोरे क़िस्से भी अंश हो गए अपने
हर छाया के पीछे दौड़ाया सपनों ने
और दब गयी पाँवो के नीचे दौड़ते-दौड़ते
कोई छाया
तो हँसे खिलखिलाकर बच्चों की तरह
और छूट गया
हाथ छाया का आकर हाथ में
तो रोये तिलमिलाकर बच्चों की तरह
ख़ालिस सुख
ख़ालिस दुख!