Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “ Dhundhla he chandrama“ , “धुँधला है चन्द्रमा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

धुँधला है चन्द्रमा

 Dhundhla he chandrama

 

सोया है मैदान घास का

ओढ़े हुए धुंधली–सी चाँदनी

और गंध घास की

फैली है मेरे आसपास और

जहाँ तक जाता हूँ वहां तक 

चादर चाँदनी की आज मैली है

यों उजली है वो घास की इस गंध की अपेक्षा

हरहराते घास के इस छन्द की अपेक्षा

मन अगर भारी है

कट जायेगी आज की भी रात

कल की रात की तरह

जब आंसू टपक रहे हैं

कल की तरह

लदे वृक्षों के फल की तरह

और मैं हल्का हो रहा हूँ

आज का रहकर भी

कल का हो रहा हूँ

 

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