Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “  Kuch sukhe phulo ke“ , “कुछ सूखे फूलों के” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कुछ सूखे फूलों के

 Kuch sukhe phulo ke

 

गुलदस्तों की तरह

बासी शब्दों के

बस्तों को

फेंक नहीं पा रहा हूँ मैं

गुलदस्ते

जो सम्हालकर

रख लिये हैं

उनसे यादें जुड़ी हैं

शब्दों में भी

बसी हैं यादें

बिना खोले इन बस्तों को

बरसों से धरे हूँ

फेंकता नहीं हूँ

ना देता हूँ किसी शोधकर्ता को

बासे हो गये हैं शब्द

सूख गये हैं फूल

मगर नक़ली नहीं हैं वे न झूठे हैं!

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