Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “  Sagar se milkar“ , “सागर से मिलकर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सागर से मिलकर

 Sagar se milkar

 

नदी खारी हो जाती है

तबीयत वैसे ही

भारी हो जाती है  मेरी

सम्पन्नों से मिलकर

व्यक्ति से मिलने का

अनुभव नहीं होता

ऐसा नहीं लगता

धारा से धारा जुड़ी  है

एक सुगंध

दूसरी सुगंध की ओर

मुड़ी है

तो कहना चाहिए

सम्पन्न  वयक्ति

वयक्ति नहीं है

वह सच्ची कोई अभिव्यक्ति

नहीं है

कई बातों का जमाव है

सही किसी भी

अस्तित्व का आभाव है

मैं उससे मिलकर

अस्तित्वहीन हो जाता हूँ

दीनता मेरी

बनावट का कोई तत्व नहीं है

फिर भी धनाड्य से मिलकर

मैं दीन हो जाता हूँ

अरति जनसंसदि का

मैंने इतना ही

अर्थ लगाया है

अपने जीवन के

समूचे अनुभव को

इस तथ्य में समाया है

कि साधारण जन

ठीक जन है

उससे मिलो जुलो

उसे खोलो

उसके सामने खुलो

वह सूर्य है जल है

फूल है फल है

नदी है धारा है

सुगंध है

स्वर है ध्वनि है छंद है

साधारण का ही जीवन में

आनंद है!a

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