Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “  Sangrah ke khilaf“ , “संग्रह के खिलाफ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

संग्रह के खिलाफ

 Sangrah ke khilaf

 

और संग्रह जो मैं

मुर्त्तिब करना चाह रहा हूँ

उड़ा रही है उसके पन्ने

एक बूडा आदमी

चल रहा है सड़क पर

बदल दिया है उसका रंग

बत्ती के मटमैले उजाले ने

और कुत्ते उस पर भोंक रहे हैं

छाया लैम्पोस्ट की

साधिकार

आ कर पड़ी है

संग्रह के खुले पन्ने पर

हवा और कुत्ते और बूढ़ा आदमी

बत्ती और लैम्पोस्ट

सब

मानो मेरे संग्रह के खिलाफ हैं

जी नहीं होता

इस सब के बीच

लिखते रहने का

कुत्तों को भागों जाऊं

बूढ़े आदमी को

भीतर बुलाऊँ!

 

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.