Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “  Sneh Path“ , “स्नेह-पथ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

स्नेह-पथ

 Sneh Path

 

हो परिचित या परिचय विहीन

तुम जिसे समझते रहे बड़ा

या जिसे मानते रहे दीन

यदि कभी किसी कारण से

उसके यश पर उड़ती दिखे धूल,

तो सख्त बात कह उठने की

रे, तेरे हाथों हो न भूल।

मत कहो कि वह ऐसा ही था,

मत कहो कि इसके सौ गवाह,

यदि सचमुच ही वह फिसल गया

या पकड़ी उसने गलत राह-

तो सख्त बात से नहीं, स्नेह से

काम जरा लेकर देखो;

अपने अन्तर का नेह अरे,

देकर देखो।

कितने भी गहरे रहे गत’,

हर जगह प्यार जा सकता है,

कितना भी भ्रष्ट जमाना हो,

हर समय प्यार भा सकता है,

जो गिरे हुए को उठा सके

इससे प्यारा कुछ जतन नहीं,

दे प्यार उठा पाये न जिसे

इतना गहरा कुछ पतन नहीं।

देखे से प्यार भरी आँखें

दुस्साहस पीले होते हैं

हर एक धृष्टता के कपोल

आँसू से गीले होते हैं।

तो सख्त बात से नहीं

स्नेह से काम जरा लेकर देखो,

अपने अन्तर का नेह

अरे, देकर देखो।

तुमको शपथों से बड़ा प्यार,

तुमको शपथों की आदत है;

है शपथ गलत, है शपथ कठिन,

हर शपथ कि लगभग आफ़त है,

ली शपथ किसी ने और किसी के

आफत पास सरक आयी,

तुमको शपथों से प्यार मगर

तुम पर शपथें छायीं-छायीं।

तो तुम पर शपथ चढ़ाता हूँ

तुम इसे उतारो स्नेह-स्नेह,

मैं तुम पर इसको मढ़ता हूँ

तुम इसे बिखेरो गेह-गेह।

हैं शपथ तुम्हारे करूणाकर की

है शपथ तुम्हें उस नंगे की

जो भीख स्नेह की माँग-माँग

मर गया कि उस भिखमंगे की।

है सख्त बात से नहीं

स्नेह से काम जरा लेकर देखो,

अपने अन्तर का नेह

अरे, देकर देखो।

 

 

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