Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “  Sukh ka Dukh“ , “सुख का दुख” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सुख का दुख

 Sukh ka Dukh

 

इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,

क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,

बड़े सुख आ जाएं घर में

तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं।

यहां एक बात

इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,

बड़े सुखों को देखकर

मेरे बच्चे सहम जाते हैं,

मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें

सिखा दूं कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।

मगर नहीं

मैंने देखा है कि जब कभी

कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में

बाजार में या किसी के घर,

तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,

किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।

बल्कि कहना चाहिये

खुशी झलकी है, डर छा गया है,

उनका उठना उनका बैठना

कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,

और मुझे इतना दु:ख होता है देख कर

कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।

मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,

इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।

इस झूले के पेंग निराले हैं

बेशक इस पर झूलो,

मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते

खड़े खड़े ताकते हैं,

अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ।

तो चीख मार कर भागते हैं,

बड़े बड़े सुखों की इच्छा

इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,

कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था

अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।

 

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