तुम नहीं समझोगे
Tum nahi samjhoge
इसलिए अपने किये पर
वाणी फेरता हूँ
और लगता है मुझे
उस पर लगभग पानी फेरता हूँ
तब भी नहीं समझते तुम
तो मैं उलझ जाता हूँ
लगता है जैसे
नाहक अरण्य में गाता हूँ
और चुप हो जाता हूँ फिर
लजाकर
अपनी वाणी को
इस तरह स्वर से सजाकर!