तुम्हारी ओर से
Tumhari aur se
मढ़ी गई है मेरे ऊपर
तन्तु जो तुम्हारा बाँधे है मुझे
इच्छा जो अचल है
तुमसे आच्छादित रहने की
आशा जो अविचल है मेरी
तुममें समा जाने की
कैसे उसे उतारूँ
कैसे उसे तोडूं कैसे उसे छोडूं
जोडूं कैसे अब इन सबको
अपने या पराये किसी छोर से
तुम्हारी और से जो मढ़ा गया है
नशा-सा चढ़ा गया है वह मुझ पर
ठगी सी बुद्धी को जगाऊँगा
तो कौन कह सकता है
लजाऊंगा नहीं
होश में आने पर!