जाके लिए घर आई घिघाय -बिहारी लाल
Jake liye ghar aai ghighaya – Bihari Lal Chaube
जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी।
आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी॥
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी।
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी॥