चाँद के चूरे
Chand ke Chure
बजते हैं तैमूर-तमूरे
नए वक़्त के ढहे कँगूरे।
पीते मुगली घुट्टी, खाते
बिरियानी बाबरनामे की
कहाँ-कहाँ से रकबा अपना
नक़ल ढूँढ़ते बैनामे की
देख रहे हैं आँखें मीचे
शीशमहल के ख़्वाब अधूरे ।
घर है एक, एक है वालिद
दो तन हैं इक जान, न देखें
बाहर की पहचान पे मरते
भीतर की पहचान न देखें
दो भाई सदियों के बिछड़े
कब मिलकर ये होंगे पूरे?
वह लड़का जो गाँव छोड़कर
भाग गया था साहब बनने
मिला सउदिया में ढाबे पर
मुझको देख लगा सिर धुनने
धँसी हुई आँखों में उसकी
चाँद सितारों के थे चूरे!