Hindi Poem of Budhinath Mishra “ Chand zara dhire ugna”,”चाँद ज़रा धीरे उगना” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

चाँद ज़रा धीरे उगना

 Chand zara dhire ugna

चाँद, जरा धीरे उगना ।

गोरा-गोरा रूप मेरा।

झलके न चाँदनी में

चाँद, जरा धीरे उगना ।

भूल आई हँसिया मैं गाँव के सिवाने

चोरी-चोरी आई यहाँ उसी के बहाने

पिंजरे में डरा-डरा

प्रान का है सुगना ।

चाँद, जरा धीरे उगना ।

कभी है असाढ़ और कभी अगहन-सा

मेरा चितचोर है उसाँस की छुअन-सा

गहुँवन जैसे यह

साँझ का सरकना ।

चाँद, जरा धीरे उगना ।

जानी-सुनी आहट उठी है मेरे मन में

चुपके-से आया है ज़रूर कोई वन में

मुझको सिखा दे जरा

सारी रात जगना ।

चाँद, जरा धीरे उगना ।

 

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