एक किरन भोर की
Ek kiran bhor ki
एक किरन भोर की
उतराई आँगने ।
रखना इसको सँभाल कर,
लाया हूँ माँग इसे
सूरज के गाँव से
अँधियारे का ख़याल कर ।
अँगीठी ताप-ताप
रात की मनौती की,
दिन पूजे धूप सेंक-सेंक ।
लिपटा कर बचपन को
खाँसते बुढ़ापे में,
रख ली है पुरखों की टेक ।
जलपाखी आस का
बहुराया ताल में
खुश हैं लहरें उछालकर ।
सोना बरसेगा
जब धूप बन खिलेगा मन,
गेंदे की हरी डाल पर ।