Hindi Poem of Budhinath Mishra “ Jugnu sa pani”,”जुगनू-सा पानी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जुगनू-सा पानी

 Jugnu sa pani

जीवन के हर पोर-पोर पर

नाच रहा जुगनू-सा पानी ।

निकले संकल्पों के अंकुर

तोड़ वर्जना की दीवारें

लेकर शुभ-संदेश उड़ रहे

नभ के वायस पंख पसारे ।

भींगे तप्त प्राण वर्षों के

महके स्वप्न विजन मरुथल में

ये अमोल मोतियाँ समेटूँ

मैं अपने रीते आँचल में ।

स्वप्निल इन्द्रधनुष पर झूलेगी

मेरी साधना सयानी ।

लोकगीत की बिरहिन बाँधे

पंखों में संदेश पवन के

पैरों में बिजलियाँ बाँध कर

नाचे परियाँ द्वार गगन के ।

रोम-रोम व्याकुल होता

तन जब समीर के झोंके परसे

जैसे किसी सुनहरी ग्रीवा पर

उछ्वास पिया के बरसे ।

झूम रही तापसी अपर्णा

पहने आज चुनरिया धानी ।

गगरी फूटी क्या रसवन्ती की

उस स्वर्गंगा के तट पर

या कान्हा ने कंकड़ फेंका

किसी गोपिका के मधुघट पर ।

कितना प्राणवन्त हाला है

राधे, तेरी आज न जाने

छिगुनी से छींटों जिस पर

उठकर लगता बाँसुरी बजाने ।

धुलकर और चमकती

रेखांकित यक्षों की प्रेम-कहानी ।

गूँज रही धरती से अम्बर

पावस की उन्मुक्त रागिनी

तरल पुष्प के शर बरसाती

लुक-छिपकर घन की सुहागिनी ।

मन का मृग भर रहा कुलाँचें

लुप्त हुई मृगतृष्णा जग की

पंकिल खेतों की मेड़ों पर

बढ़ी नीलिमा बहकी-बहकी ।

कैसे पथिक चले निर्भय हो

डूबी पगडंडी अनजानी ।

आर्द्र-अम्बरा ‘वृक्षपरी’ के

किसलय-से अरुणाधर फड़के

आहत-उर भुजंगिनी सरि के

दोनों कोर प्रणय की छलके ।

वशीकरण के यन्त्र मनोहर

कीलित मेंहदी से हाथों पर

मुखर हुई सर्जना-सुरभि

निर्माता के मृदु आघातों पर ।

मैं बनता बादल राजा

यदि कोई बनती बिजली रानी ।।।

 

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