Hindi Poem of Budhinath Mishra “ Pata nahi”,”पता नहीं” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

पता नहीं

 Pata nahi

पता नहीं सच है कि झूठ

पर लोगों का कहना है

मेरे प्रेम पगे गीतों को

उमर-क़ैद रहना है।

ऐसी हवा बही है दिल्ली

पटना से हरजाई

सरस्वती के मंदिर में भी

खोद रहे सब खाई

बदले मूल्य सभी जीवन के

कड़वी लगे मिठाई

दस्यु-सुंदरी के समक्ष

नतमस्तक लक्ष्मीबाई

इसी कर्मनाशा में

कहते हैं, सबको बहना है।

इस महान भारत में अब है

धर्म पाप को नौकर

एक अरब जीवित चोले में

मृत है बस आत्मा भर

बाट-माप के काम आ रहे

हीरे-माणिक पत्थर

मानदेय नायक से भी

ज़्यादा पाते हैं जोकर

मुर्दाघर में इस सडांध को

जी-जीकर सहना है

घर के मालिक को ठगकर

जब मौज करें रखवाले

धर्मांतरण करें जब गंगा-

जल का गन्दे नाले

नामर्दी के विज्ञापन से

पटी पड़ी दीवारें

होड़ लगी हैं कौन रूपसी

कितना बदन उघारे

पिछड़ेपन की बात

कि लज्जा नारी का गहना है।

लेकर हम संकल्प चले थे

तम पर विजय करेंगे

नई रोशनी से घर का

कोना-कोना भर देंगे।

लेकिन गाँव शहीदों के

अब भी भूखे-अधनंगे

उन पर भारी पड़े नगर के

मन के भूखे-नंगे

ऐसे में इस गीतकार को

बोलो क्या कहना है?

 

 

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