Hindi Poem of Budhinath Mishra “Swar Vasanti”,”स्वर वासन्ती” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

स्वर वासन्ती

 Swar Vasanti

सब्ज़परी उतरी आँगन में

फूटी गन्ध सुमन बन ।

अनजानी डाली पर कुहके

मेरा बनजारा मन ।

विकल समीर फिरे वन-वन

कुण्डल में कस्तूरी भर

कम्पित कलियों के अधरों पर

बिछे मदिर श्रम-सीकर ।

ऐसी आँधी उठी वसन्ती

लिपटी दिशा गगन से

वल्लरियाँ द्रुम से आलिंगित

स्वप्निल प्रीति सृजन से ।

किन नयनों ने क्या कर डाला

सुलगा तरु का यौवन

बिछुड़ रहा है वृन्त-वृन्त से

मेरा अलसाया तन ।

उषा रंगिनी बाँट गई

प्राची-नभ से कुंकुम जो

मानस-मानस सिमटे वे

उपजे अनुराग-कुसुम हो ।

अनहोनी कुछ हुई न

फिर क्यों भाव जगे सिहरन के?

अर्थ नए अँखुए-से निकले

ठूँठ शब्द के तन से ।

इन्द्रधनुष के पंख लगा

क्यों राधा विचरे तृण-तृण?

सँवर रहा यादों की फुनगी पर

जब अनब्याहा प्रण ।

दृग के कुमुद गिनें तारे

या ढूँढें शशि वह निर्मम

आग लगाए जल में

जिसकी आँखमिचौनी का क्रम ।

जग की सभी व्यथाएं संचित

इस अणु-से अंकुर में

सत्रहवर्षी उर में ।

पीकर उनकी सुरभि सलोनी

उगी मंजरी नूतन

हर मधुकण में प्रतिबिम्बित

कर्पूरी उनका आनन ।

कौन बुलाकर द्वार पूजती

वायस साँझ-सबेरे

बचा न अब यह स्नेह

जलाये पय से दिये कनेरे ।

कितने पीर-पतंगों को

उसने अन्तर में बाँधा

ले उधार उल्लास कि जिस

आँचल ने मयन अराधा ।

फहराएँ उनकी समाधि पर

कुसमायुध के केतन

खुला रहा जिनका अनन्त की ओर

सदा वातायन ।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.