Hindi Poem of Chandrasen Virat “ Mukatak”,”मुक्तक” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मुक्तक

 Mukatak

कौन कहता है भली होती है?

हर बुराई में ढली होती है

एक जीवन को नरक से जोड़े

वारुणी ही वो गली होती है ।

मिलते जुलते हैं, आते जाते हैं

ऊपरी दोस्ती निभाते हैं

हाथ तो खूब मिलाते हैं मगर

दिल से दिल नहीं मिलाते हैं ।

नाश को एक कहर काफ़ी है

नाव को एक लहर काफ़ी है

प्राण हरने के लिए प्याले में

एक ही बूँद ज़हर काफ़ी है ।

कौन कहता है कि आसान रहा

मैं परेशान, हलाकान रहा

युद्ध अपना तो यहाँ जीवन से

ख़ूब घनघोर घमासान रहा ।

हम विधाता थे, विधायक रहे

श्रेष्ठ थे, अब किसी लायक न रहे

आज भी हैं तो मगर नाटक में

हम विदूषक ही हैं, नायक न रहे ।

भूमि पैरों से सरक जाएगी

बूँद आँसू की ढरक जाएगी

मन का विश्वास अगर डोल गया

दिल की दीवार दरक जाएगी ।

रूप रेशम-सा था, ऊनी निकला

ज़र्फ रखता था, जुनूनी निकला

सत्य अपराध कथा है जिसमें

जो था नायक वही ख़ूनी निकला ।

जब भी होगा वो अचानक होगा

अपने वैचित्र्य का मानक होगा

जिसका आरंभ भयावह त्रासद

अंत भी उसका भयानक होगा ।

देह में प्राण की महत्ता है

सृष्टि में स्थान की महत्ता है

अंक वे ही हैं एक से नौ तक

शून्य के मान की महत्ता है ।

वह स्वयं में बुरी नहीं होती

दिव्यता आसुरी नहीं होती

होगा वादक ही बेसुरा कोई

बाँसुरी बेसुरी नहीं होती ।

दृष्टि की, ध्यान की ज़रूरत है

खोज, संधान की ज़रूरत है

एक से बढ़ के एक है प्रतिभा

सिर्फ़ पहचान की ज़रूरत है ।

मन से जीते जी न आशा जाए

सावधानी से तलाशा जाए

खूब चमकेंगे ये अनगढ़ हीरे

इनको थोड़ा-सा तराशा जाए ।

 

 

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