दिन क्यों बीत गए
Din kyo beet gye
कौन किसे
क्या समझा पाया
लिख-लिख गीत नए ।
दिन क्यों बीत गए!
चौबारे पर दीपक धरकर
बैठ गई संध्या
एक-एक कर तारे डूबे
रात रही बंध्या ।
यों
स्वर्णाभ-किरण-मंगल-घट
तट पर रीत गए ।
छप-छप करती नाव हो गई
बालू का कछुआ
दूर किनारे पर जा बैठा
बंसीधर मछुआ ।
फिर
मछली के मन पर काँटे
क्या-क्या चीत गए ।