झाँकते हैं फिर नदी में पेड़
Jhankte he fir nadi me ped
झाँकते हैं
फिर नदी में पेड़
पानी थरथराता है
यह
नुकीले पत्थरों का तल
काटता है धार को प्रतिपल
और
तट की बाँबियों को छेड़
फिर कोई संपेरा गुनगुनाता है
हर नदी का
शौक़ है घड़ियाल
कह न पातीं मछलियाँ वाचाल
पूछती है
एक काली भेड़
यह सूरज यहाँ क्यों रोज़ आता है